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थोड़ा लंबा है पर पढियेगा जरूर
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Thursday, 14 June 2018 07:44 AM
Yogesh
थोड़ा लंबा है पर पढियेगा जरूर एक लड़का था. बहुत ब्रिलियंट था. सारी जिंदगी फर्स्ट आया. साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया. अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई में. वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया. वहां से आगे की पढ़ाई पूरी की. M.Tech वगैरा कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआ से MBA किया. . अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है. सुनते हैं कि वहां भी हमेशा टॉप ही किया. वहीं नौकरी करने लगा...Read More
कृषि पर बल
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Monday, 06 February 2017 07:32 PM
NAVENDU NAVIN
भारत एक कृषि प्रधान देश है, साथ ही यहाँ की अधिकतम आबादी कृषि कार्य में ही संलग्न है;फिर भी ये लोग अपनी ख़राब आर्थिक स्थिति के कारण खुश नहीं है।इसका सबसे बड़ा कारण है कि कृषि एवं पशुपालन के नाम पर केवल क़ानून बनाना एवं कागज़ी खानापूर्ति करना और किसानों की वास्तविक समस्याओं की ओर ध्यान न देना। कृषि एवं पशुपालन अर्थ व्यवस्था का अहम हिस्सा है साथ ही दोनों के बीच अन्योनाश्रय समबन्ध भी है। यदि इस क्षेत्र में सही रूप से काम किया जाए तो यह देश को अकेला विकसित बना सकता है। गौरतलब हो कि कनाडा और अर्जेंटाइन...Read More
समाज मे फैला हुआ भ्रष्टाचार
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Friday, 09 September 2016 02:07 PM
Nagma
भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट + आचार । भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो। जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरूद्ध जाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भष्टाचारी कहलाता है। आज भारत जैसे सोने की चिड़िया कहलाने जाने वाले देश में भ्रष्टाचार अपनी जड़े फैला रहा है। आज भारत में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद है जो भ्रष्टाचारी हैं। आज पूरी दुनिया में भारत भ्रष्टाच...Read More
भारत में बेरोज़गारी की समस्या
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Friday, 09 September 2016 02:05 PM
Nagma
बेरोजगारी/बेकारि से तात्पर्य उन लोगो से है, जिन्हे काम नही मिलता ना कि उन लोगो से जो काम करना नही चाहते। यहां रोजगार से तात्पर्य प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के लिए तैयार लोगो से है। यदि किसी समय किसी काम की मजदूरी 110 रूपय रोज है और कुछ समय पश्चात इसकी मजदूरी घटकर 100 रूपय हो जाती है और व्यक्ति इस कीमत पर काम करने के लिए तैयार नही है तो वह व्यक्ति बेरोजगार की श्रेणी मे नहीं आएगा। इसके अतिरिक्त बच्चे, बुड़े, अपंग, वृद्ध या साधू संत भी बेरोजगारी की श्रेणी मे नहीं आते। अगर हम बहुत ही सरल शब्दो ...Read More
माँ मुझे भी जीना है।
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Tuesday, 06 September 2016 12:17 PM
City Web
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आंदोलन से लेकर नीतिगत रूप से रंग भेद का मुखर विरोध होने में सफल रहा है। परन्तु जिस प्रकार वर्ण व्यवस्था की मज़बूत दीवारे आज भी समाज मे है और समाज को प्रभावीत कर रही है उसी प्रकार लिंग भेद की भावना के चलते ही भ्रूण हत्या के विरूद्ध भारत सरकार को कानून बनाने के लिए मज़बूर होना पड़ा है। काश गर्भस्थ शिशु बोल सकता, यदि वह बोलता तो शायद वह अपने शरीर को चीरतें औजारों को रोक सकता और कहता माँ, मुझे भी जीना है।‘ लेकिन शायद उस वक्त भी उसकी आवाज को वो निर्दयी माँ-बाप नहीं सुन पात...Read More
मोल-भाव - अब मै तुमसे ही फल खरीदूंगा
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Thursday, 21 April 2016 10:29 AM
yogesh
ऑफिस से निकल कर शर्माजी ने स्कूटर स्टार्ट किया ही था कि उन्हें याद आया,
पत्नी ने कहा था,१ दर्ज़न केले लेते आना।
तभी उन्हें सड़क किनारे बड़े और ताज़ा केले बेचते हुए
एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गयी।
वैसे तो वह फल हमेशा "राम आसरे फ्रूट भण्डार" से ही लेते थे,
पर आज उन्हें लगा कि क्यों न बुढ़िया से ही खरीद लूँ ?
उन्होंने बुढ़िया से पूछा, "माई, केले कैसे दिए"
बुढ़िया बोली, बाबूजी बीस रूपये दर्जन,
शर्माजी बोले, माई १५ रूपये दूंगा।
बुढ़िया ने कहा, अट्ठ...Read More
कहीं मंदिर बना बैठे ,कहीं मस्जिद बना बैठे
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Wednesday, 24 February 2016 08:00 PM
Nitin Kumar Sharma
मैंने एक पोस्ट पढी थी,इन हालातों में मुझे वह याद आ रही है..."कहीं मंदिर बना बैठे ,कहीं मस्जिद बना बैठे । हमसे तो जात अच्छी है परिंदों की,कभी मंदिर पर जा बैठे तो कभी मस्जिद पर जा बैठे।"
...... हम शायद एक दुसरे से नहीं सीख सकते तो पशु पक्षिओं से ही कुछ सीख लें। जो अपना हित अहित तो पहचानते हीं हैं,और हमको भी जीने की कला सिखाते हैं। क्योकिं हमारे क्रिया कलाप तो मरने के हीं हैं। कोई भी धर्म या पंथ अशांति की शिक्षा नहीं देता है यदि देता है तो वह धर्म ही नहीं।क्योकिं धर्म तो जीओ और जीने की ...Read More
सभी को आत्ममंथन और गहन चिंतन की आवश्यकता
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Wednesday, 24 February 2016 07:47 PM
Nitin Kumar Sharma
आज हम सभी को आत्ममंथन और गहन चिंतन की आवश्यकता है..जातपात, छुआछात,धार्मिक संकीर्णता,आरक्षण,सम्प्रदाय वाद को त्यागकर विकास , उन्नति , गुणवत्ता और राष्ट्रवाद को वरीयता देनी चाहिए ।
यह बात बौद्धिक वर्ग ,नेता ,शासक वर्ग,सरकार के पक्ष और विपक्ष और सरकार को अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए।और इस पर क्रिया करनी चाहिए और एकमत होकर नियम और कानून बनाने चाहिए।आमजन तो अपना हित चाहता है परंतु उसे यह ज्ञात नहीं होता कि हित कैसे हो,जिसे प्राप्त करने के लिए वह अपनी सोच और बुद्धि के अनुसार कभी कभी गलत रास्ते का भी ...Read More
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