एक दिन मैं एक म्यूजियम में एक कलाकृति को देख् रहा था ,वह् आड़े तिरछी सी लकीरों का एक समूह सा दिखाई दे रही थी / मैंने उसे देखा और सोचा कि इतने ऐतिहासिक म्युजियम में इस तस्वीर का क्या काम ? और वह् भी लाखों रुपयों में... पर ,इससे तो लाख गुना सुंदर तस्वीर जमीन पर रख कर बेचने वालो पर चंद पैसो में मिल जाती हैं... कैसी नाइंसाफि है,...कलाकार और कला दोनों के साथ .....तभी तस्वीर में से आवाज आयी कि ..... कई बार साधारण सी दिखने वाली चीज असाधारण प्रसिद्धि पाती है और असाधारण गुम् नामी के अंधेरों में खो जाती है / प्रसिद्धि और गुमनामी के पीछे उसके पीछे छिपा विचार होता है... जो उसको असाधारण बनाता है ...यदि किसी भी चीज को बनाने से पहले ,जिस असाधारण विचार के धरातल पर उस का आधार रखा जाता है ,तो वह् साधारण होते हुए भी असाधारण हो जाती है /अन्यथा असाधारण साधारण में बदल जाती है /वह अदुभुत और चमत्कारी विचार मेरे पीछॆ है तभी तो मैं... यहाँ, और वह्... वहाँ/...एकाएक मेरी आँखें खुल गयी ..वाणी मौन हो गई.... समझ में आ गया ....कितनी अदुभुत होती है विचार कि शक्ति ......आचार्य मनजीत धर्मध्वज