कल्पना करें कि आप व्यस्त ट्रैफिक में सड़क के बीच बाइक पर हैं और बाइक खराब हो गयी. उस वक्त जिस तेजी से बाकी गाड़ियां आपको भागती नजर आती हैं, उससे दिल में बेचैनी बढ़ जाती है. लगता है वे तो मंजिल तक पहुंच जायेंगे और आप कितना पीछे रह गये.
कुछ ऐसी ही बेचैनी कई बार लोगों को अपने कैरियर को लेकर होती है. उन्हें लगता है कि कैरियर की रेस में वे काफी पीछे रह गये हैं और उनके साथ के लोग काफी आगे निकल
गये हैं.
पिछले दिनों लंबे समय बाद कॉलेज के एक मित्र के घर जाना हुआ. वह सरकारी अधिकारी हैं. ठीक-ठाक पैसे मिलते हैं, लेकिन अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं हैं. मैंने पूछा कैसी चल रही है जिंदगी, तो उसने कहा- बस ये समझ लो कि चल रही है. मेरे साथ के लोग आज कहां से कहां पहुंच गये, लेकिन मैं यहीं रह गया. मैंने जिसे सिखाया आज वो मुझसे ज्यादा कमा रहा है. और कल्पेश की तो ैजैसे लॉटरी ही लग गयी.
लाखों में खेल रहा है बंदा. मैं जितनी देर उसके पास रहा, उसने अपने बारे में तो कम ही बातें की, लेकिन दूसरों की बेहतर स्थिति का रोना जरूर रोता रहा. यह स्थिति मैंने कइयों के साथ देखी है. शायद ही कोई ऐसा मिला हो, जो अपनी स्थिति से खुश हो. सभी को यही लगता है कि जिंदगी का सारा संघर्ष उन्हीं के खाते में है और लॉटरी उनके साथवालों की लग गयी है.
हमें खुद से बेहतर करनेवालों की तरफ जरूर देखना चाहिए, लेकिन इस नजरिये से नहीं कि मैं वहीं रह गया और वह वहां पहुंच गया, बल्कि इस नजर से देखना चाहिए कि आप कैसे उनसे आगे पहुंच सकते हैं. आप मानें न मानें, लेकिन जब आप यह कहते हैं कि आपके साथवाला कहां से कहां पहुंच गया और आप वहीं रह गये, तो इसका मतलब है कि आप उससे ईर्ष्या करते हैं और अगर ईर्ष्या रहेगी, तो आपकी ऊर्जा का रुख नकारात्मक होगा. इसलिए ऐसा कहना छोड़ें और अपनी बातों में, अपने व्यवहार में सिर्फ खुद के आगे बढ़ने के लिए रास्ता तलाशें, अन्यथा आप खुद को बीच ट्रैफिक में ही खड़े पायेंगे और बाकी लोग आपसे बहुत आगे निकल जायेंगे.
बात पते कीः
-अपनी बातों में, अपने व्यवहार में सिर्फ खुद के आगे बढ़ने के लिए रास्ता तलाशें.
-हमें खुद से बेहतर करनेवालों की तरफ जरूर देखना चाहिए, लेकिन इस नजरिये से कि आप वहां तक कैसे पहुंच सकते हैं.