थोड़ा लंबा है पर पढियेगा जरूर
एक लड़का था. बहुत ब्रिलियंट था. सारी जिंदगी फर्स्ट आया. साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया. अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई में. वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया. वहां से आगे की पढ़ाई पूरी की. M.Tech वगैरा कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआ से MBA किया.
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अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है. सुनते हैं कि वहां भी हमेशा टॉप ही किया. वहीं नौकरी करने लगा. बताया जाता है कि 5 बेडरूम का घर था उसके पास. शादी यहाँ दक्षिण की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई थी. बताते हैं कि ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे, कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में.
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अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इस से आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख, इसके बाद हीरो हेरोइने सुखपूर्वक वहां की साफ़ सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे, The End.
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अब एक दोस्त हैं हमारे, एक नंबर के घुमक्कड़ हैं, घर कम रहते हैं सफ़र में ज्यादा रहते हैं. ऐसी ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही, 4 -6 दिन पहाड़ों पर घूमना, trekking करना उनके लिए आम बात है. ऐसे ऐसे दुर्गम स्थानों पर जाते है, फिर आ के किस्से सुनाते हैं,ब्लॉग लिखते हैं. उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है, न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना (सफ़र में), फिर भी कोई टेंशन नहीं, चल पड़े घूमने, बैग कंधे पर लाद के. मेरी बीवी कहती है अक्सर, कि एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए, जो न खुद घर रहता है, न दूसरों को रहने देता है, बहला फुसला के ले जाता है अपने साथ. पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुन के रश्क होता है, कितना रफ एंड टफ है यार ये आदमी, कितना जीवट है इसमें, बड़ी सख्त जान है.
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आइये अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा आ जाते हैं. तो आप उस इंजिनियर लड़के का क्या फ्यूचर देखते हैं लाइफ में? सब बढ़िया ही दीखता है? पर नहीं, आज से तीन साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली. अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली. What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई.
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ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा justify किया अपने इस कदम को और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में. उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने study किया है. What went wrong?
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हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी. बहुत दिन खाली बैठे रहे. नौकरियां ढूंढते रहे. फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पे आने की नौबत आ गयी. कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पे तेल भरा बताते हैं. साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली... ख़ुशी ख़ुशी और उसकी बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गयी, ख़ुशी ख़ुशी. जी हाँ लिखा है उन्होंने कि हम सब लोग बहुत खुश हैं, कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा, सब कष्ट ख़तम हो जायेंगे.
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इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने : This man was programmed for success but he was not trained,how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए.
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आइये ज़रा उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं. बहुत तेज़ था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया. ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से. गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए. फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को,12 th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी. अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets.
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कमबख्त ये दुनिया बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी, अलग से इम्तहान लेती है. आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे. वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता. ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है. और सवाल साले,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है. कोई डेट sheet नहीं.
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एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे दिल्ली में. Mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहां. तभी एक लड़की, रही होगी यही कोई 7-8 साल की, अचानक जोर जोर से रोने लगी. हम लोग दौड़े, क्या हुआ भैया, देखा तो वो लड़की गिर गयी थी. वहां ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में ज़रा सी गीली मिटटी लग गयी थी और थोड़ी उसकी frock में भी. सो वो जार जार रो रही थी. खैर हमने उसके हाथ धोये और ये बताया कि कुछ नहीं हुआ बेटा, ये देखो, धुल गयी मिटटी. खैर साहब थोड़ी देर में उसकी माँ आ गयी, high heels पहन के और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई कि आप लोग ठीक से काम नहीं करते हो, लापरवाही करते हो, कैसे गिर गया बच्चा, अगर कुछ हो जाता तो? सचमुच इतना बड़ा हादसा, भगवान् न करे किसी के साथ हो जीवन में.
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एक और आँखों देखी घटना है मेरी. कैसे माँ बाप अपने बच्चों को spoil करते हैं. हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे, बच्चे स्कूल बस से आते थे. ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हलकी सी चोट लग गयी, यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट. अब वो बच्चा जोर जोर से रोने लगा, बस यूँ समझ लीजे, चिंघाड़ चिंघाड़ के, क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे. खैर मामूली सी बात थी, हमने उसे फर्स्ट ऐड दे के बैठा दिया. तभी भैया, यही कोई 10 मिनट बीते होंगे, उस बच्चे के माँ बाप पहुँच गए स्कूल और फिर वहां जो रोआ राट मची. वो बच्चा जितनी जोर से रोता, उसकी माँ उस से ज्यादा जोर से चिंघाड़ती और उसका बाप जोर जोर से चिल्ला रहा था, पागलों की तरह. मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है, आप लोग अभी तक हॉस्पिटल ले के नहीं गए? अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है.
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मेरा एक दोस्त जो वहां PTI था उसके साथ हम एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में गए. अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए. वहां पर भी उस लड़के का बाप CT Scan, Plastic surgery न जाने क्या क्या बक रहा था. पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज दिया.
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एक और किस्सा उसी स्कूल का, एक श्रीमान जी सुबह सुबह आ के लड़ रहे थे, क्या हुआ भैया, स्कूल बस नहीं आयी, हमें आना पड़ा छोड़ने. बाद में पता चला श्रीमान जी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर, उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था और लड़का उनका 10 साल का था.
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क्या बनाना चाहते हैं आज कल के माँ बाप अपने बच्चों को? ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएंगे?
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आज से लगभग 15 साल पहले, मेरा बड़ा बेटा 4-5 साल का था, अपने खेत पे जा रहे थे हम. बरसात का season था, धान के खेतों में पानी भरा था. मेरे बेटे ने मुझे कहा, पापा, मुझे गोदी उठा लो. मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा, पैदल चलो और वो चलने लगा और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया. कपडे सब कीचड में सन गए. अब वो रोने लगा, मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा, उठो, वो वहीं बैठा बैठा रो रहा था. उसने मेरी तरफ हाथ बढाए, मैंने कहा अरे पहले उठो तो और वो उठ खड़ा हुआ. मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया. हम फिर चल पड़े. थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया, पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी. उसने सिर्फ इतना ही कहा, अर्रे... और हम सब हंस दिए. वो भी हंसने लगा और फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया. मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप बेटा बीसों बार उस खेत पे गए होंगे, वो उसके बाद वहां से आते जाते कभी नहीं गिरा.
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कल मैं अपने उस घुमक्कड़ दोस्त की मुंसियारी की एक झील की trekking वाली पोस्ट पढ़ रहा था. 4 दिन उस सुनसान बियाबान में, जिसका रास्ता तक नहीं पता, इतनी बारिश और ओला वृष्टि में, ऊपर से ले कर नीचे तक भीगे, भूखे प्यासे, न रहने का ठिकाना न सोने का. उस कीचड भरी गुफा में, उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में रात बिता के भी, कितने खुश थे. इतना संघर्ष शील आदमी, क्या जीवन में कभी हार मानेगा?
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काश कार्तिक राजाराम, जी हाँ यही नाम था उस इंजीनियर लड़के का. उसे भी बचपन में गिरने की, गिर गिर के उठने की, बार बार हारने की और हार के बार बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती.
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कठोपनिषद में एक मंत्र है, उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत. उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो. शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल, इतना सुकुमार मत बनाइये कि वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त न कर सके.
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एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था. एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया. आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया. उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह. अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा. किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे. बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है. Mom, there is a jungle out there.
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इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिये।
डा. सुनील पँत जी की वाल से साभार।